IAS अधिकारी की मौत: क्या होनी चाहिए स्वतंत्र जांच? | प्रशासन में उत्पीड़न के आरोप

आईपीएस अधिकारी 'आत्महत्या' मामला: पत्नी ने शिकायत में हरियाणा के डीजीपी का नाम लिया; दावा, पति को 'वर्षों तक व्यवस्थित अपमान' का सामना करना पड़ा
IAS अधिकारी की मौत पर स्वतंत्र जांच की मांग करते परिजन

 

IAS अधिकारी की मौत पर स्वतंत्र जांच की मांग करते परिजन

एडीजीपी की पत्नी अमनीत पी कुमार ने कहा कि उन्हें ‘किसी भी कीमत पर न्याय मिलेगा’

चंडीगढ़: हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की पत्नी और आईएएस अधिकारी अमनीत पी कुमार, जिन्होंने कथित तौर पर मंगलवार को खुद को गोली मार ली थी, ने बुधवार रात चंडीगढ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत सिंह कपूर और रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारनिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की और उनकी गिरफ्तारी की मांग की। अमनीत ने बीएनएस धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर की मांग की। आईएएस अधिकारी ने बुधवार रात 8.55 बजे दर्ज की गई शिकायत में दावा किया, “यह सामान्य आत्महत्या का मामला नहीं है, बल्कि शक्तिशाली वरिष्ठों द्वारा अनुसूचित जाति समुदाय के एक ईमानदार अधिकारी के व्यवस्थित उत्पीड़न का प्रत्यक्ष परिणाम है।” उनकी शिकायत में कहा गया, “न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए भी दिखना चाहिए – यहां तक ​​कि हमारे जैसे परिवारों के लिए भी, जो शक्तिशाली लोगों की क्रूरता से टूट गए हैं।”

रहस्य नोट

 


💔 अधिकारी की मौत पर सवाल: क्या होना चाहिए स्वतंत्र जांच?

“वर्षों तक अपमान, उत्पीड़न और भेदभाव झेलने वाले अधिकारी की मौत ने प्रशासनिक व्यवस्था की आत्मा को झकझोर दिया है।”


🔹 पृष्ठभूमि: एक ईमानदार अधिकारी की त्रासदी

बिहार या हरियाणा जैसी राज्य व्यवस्थाओं में प्रशासनिक सेवा अक्सर “जनसेवा” का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन हाल ही में हुई एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की संदिग्ध मौत ने इस विश्वास को गहराई से हिला दिया है।

आईएएस अधिकारी अमनीत ने अपनी लिखित शिकायत में आरोप लगाया कि उनके पति, जो “निर्विवाद सत्यनिष्ठा और असाधारण सार्वजनिक भावना” वाले अधिकारी थे, उन्हें वर्षों तक व्यवस्थित अपमान, उत्पीड़न और जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।


🔹 ‘डीजीपी और एसपी ने जानबूझकर अनदेखी की’ – अमनीत के गंभीर आरोप

अमनीत ने अपनी शिकायत में लिखा कि उनके पति ने डीजीपी कपूर और एसपी नरेंद्र बिजारनिया से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी।

“डीजीपी ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और एसपी ने जानबूझकर उनकी कॉल का जवाब नहीं दिया।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रोहतक पुलिस द्वारा दर्ज की गई “झूठी एफआईआर (संख्या 0319/2025)” उनके पति को फंसाने की साजिश का हिस्सा थी।


🔹 “जाति आधारित भेदभाव और पूजा स्थलों से बहिष्कार”

शिकायत में एक और गंभीर आरोप सामने आया — अधिकारी को उनकी एससी पृष्ठभूमि के कारण लगातार अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ा।

“उन्होंने बार-बार एससी/एसटी अधिनियम के संरक्षण की मांग की, लेकिन हर बार अनसुना किया गया।”

ये आरोप भारतीय प्रशासनिक ढांचे में जातिगत भेदभाव और संस्थागत उत्पीड़न की जड़ों को उजागर करते हैं।


🔹 सुसाइड नोट में दर्ज पीड़ा: “एक टूटी हुई आत्मा की आखिरी आवाज़”

पुलिस द्वारा बरामद आठ पन्नों के सुसाइड नोट में कई अधिकारियों के नाम दर्ज हैं।
यह नोट एक ऐसी आत्मा की गवाही देता है जिसे सिस्टम ने धीरे-धीरे तोड़ दिया

“यह व्यक्त करना असंभव है कि मैंने और मेरे बच्चों ने क्या खोया है — एक पति, एक पिता, एक व्यक्ति जिसका एकमात्र अपराध सेवा में ईमानदारी थी।”


🔹 क्या होनी चाहिए स्वतंत्र जांच?

इस मामले में अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है —
👉 क्या अधिकारी की मौत की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए?

जवाब स्पष्ट है — हाँ, अवश्य।
क्योंकि जब आरोप उन्हीं अधिकारियों पर हों जिनके पास शक्ति, संसाधन और प्रभाव हो, तो आंतरिक जांच कभी पर्याप्त नहीं हो सकती।

एक स्वतंत्र जांच एजेंसी (जैसे CBI या न्यायिक आयोग) को इस मामले की निगरानी करनी चाहिए ताकि

  • साक्ष्य के साथ कोई छेड़छाड़ न हो,
  • गवाहों को प्रभावित न किया जा सके,
  • और पीड़ित परिवार को न्याय का भरोसा मिल सके।

🔹 संस्थागत जवाबदेही की ज़रूरत

यह घटना केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे की संवेदनशीलता और जवाबदेही पर सवाल खड़े करती है।

यदि “सत्यनिष्ठा” और “ईमानदारी” ही किसी अधिकारी के लिए सबसे बड़ा अपराध बन जाए, तो यह केवल एक त्रासदी नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मिक विफलता है।


🔹 निष्कर्ष: न्याय के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी है

अमनीत ने अपने पति के लिए जो आवाज़ उठाई है, वह सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं — यह उन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की आवाज़ है जो प्रणालीगत उत्पीड़न के खिलाफ खामोश रहते हैं

अब समय है कि इस मामले में

  • स्वतंत्र जांच हो,
  • जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो,
  • और प्रशासनिक सुधार पर ठोस कदम उठाए जाएं।

क्योंकि एक ईमानदार अधिकारी की मौत को “सिर्फ आत्महत्या” कहकर भुला देना,
हम सबकी सामूहिक नैतिक हार होगी।


🕊️ “न्याय केवल अदालतों में नहीं, समाज के विवेक में भी दिया जाता है।”

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