दिल्ली में दिवाली से पहले सुप्रीम कोर्ट का संकेत: क्या फिर से फूटेंगे पटाखे? हरित पटाखे(Green Crackers) पर मचा घमासान

🔥 प्रस्तावना: सुप्रीम कोर्ट का इशारा और दिल्ली की दोधारी स्थिति

नई दिल्ली में दिवाली से ठीक एक सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह हरित पटाखों (Green Crackers) की बिक्री की अनुमति दे सकता है।
यह खबर जैसे ही सामने आई, दिल्ली के बाजारों में उत्साह और चिंता दोनों का माहौल बन गया।

एक ओर नागरिक उत्सव की चमक वापस आने पर खुश हैं,
तो दूसरी ओर पर्यावरणविदों को डर है कि यह फैसला
दिल्ली को एक बार फिर “गैस चैंबर” में बदल सकता है।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना अंतिम निर्णय सुनाने वाला है।

🧨 क्या हैं ‘हरित पटाखे (Green Crackers)’?

‘हरित पटाखे’ या Green Crackers वे पटाखे हैं जिन्हें
CSIR-NEERI (Council of Scientific & Industrial Research – National Environmental Engineering Research Institute)
द्वारा विकसित किया गया है।

इनका दावा है कि ये:

  • 20–30% कम प्रदूषणकारी हैं,
  • कम धुआं और शोर पैदा करते हैं,
  • और कम हानिकारक रासायनिक तत्वों का उपयोग करते हैं।

इन पटाखों की पहचान के लिए:

  • हरे लोगो (CSIR-NEERI Logo) और
  • Encrypted QR Code पैकेजिंग पर दिया जाता है।

हालांकि, दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) के एक अध्ययन (2022) में पाया गया कि

हरित पटाखे भी “अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स” छोड़ते हैं
जो फेफड़ों में गहराई तक जाकर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं।

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Green Crackers

💬 व्यापारियों की राय: ‘हरित पटाखे’ अवैध व्यापार पर रोक लगाएंगे

दिल्ली फायरवर्क्स ट्रेडर्स एसोसिएशन के सदस्य राजीव कुमार जैन ने कहा,

“अगर कोर्ट हरित पटाखों की अनुमति नहीं देता, तो माफिया सक्रिय हो जाएगा।
अनुमति मिलने से व्यापार को वैधता और लोगों को सुरक्षित विकल्प मिलेगा।”

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि:

  • जैसे भोजन पर FSSAI सर्टिफिकेशन और
  • आभूषण पर Hallmarking होती है,
    उसी तरह पटाखों के लिए भी मानक परीक्षण व्यवस्था होनी चाहिए।

व्यापारी वर्ग का मानना है कि पिछले साल पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद
गैर-कानूनी पारंपरिक पटाखे खुलेआम बिके,
इसलिए नियंत्रित अनुमति ही व्यवहारिक समाधान हो सकती है।


🌫️ पर्यावरणविदों की चेतावनी: ‘हरित’ नाम केवल भ्रम है

पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी का कहना है,

“विज्ञान और सामान्य ज्ञान दोनों कहते हैं —
हरित पटाखों में ‘हरित’ कुछ भी नहीं है।”

उन्होंने बताया कि CSIR-NEERI के अपने आंकड़े दिखाते हैं
कि उत्सर्जन में केवल 30% की गिरावट होती है —
वह भी प्रयोगशाला की नियंत्रित परिस्थितियों में।

“दिल्ली की सर्दियों में, जब हवा ठंडी और घनी होती है,
तो यह 30% की कमी कोई मायने नहीं रखती।
एक रात की आतिशबाजी कई दिनों तक हवा को जहर बना देती है,”
वह कहती हैं।

कंधारी ने जोर दिया कि स्वच्छ हवा कोई विलासिता नहीं,
बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।


👶 माता-पिता की चिंता: “बच्चे पहले से ही जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं”

दिल्ली की निवासी नेहा जैन, जो दो बच्चों की मां हैं, कहती हैं —

“मेरे बच्चे रोज़ नेब्युलाइज़र पर हैं।
प्रदूषित हवा को फर्क नहीं पड़ता कि पटाखे ‘हरे’ हैं या नहीं —
यह बच्चों के फेफड़ों को समान रूप से नुकसान पहुंचाती है।”

उन्होंने अदालत से उत्सव से ऊपर सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की अपील की।

“बिना पटाखों के भी दिवाली उतनी ही खूबसूरत हो सकती है,”
वह कहती हैं।


🌍 विशेषज्ञों की राय: “ग्रीन पटाखे भी प्रदूषण बढ़ाएंगे”

EnviroCatalysts थिंक टैंक के प्रमुख विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा,

“इस साल मॉनसून के लौटने के बाद हवा की गुणवत्ता पहले ही खराब हो रही है।
परिवहन, निर्माण और बिजली से उत्सर्जन पहले से अधिक है।
ऐसे में पटाखों पर कोई भी छूट स्थिति को और बिगाड़ देगी।”

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दिल्ली में
हरित पटाखों को भी अनुमति दी गई,
तो वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच सकती है।


💡 वैज्ञानिक पक्ष: क्या सच में हरे पटाखे कम हानिकारक हैं?

CSIR-NEERI के अनुसार, हरित पटाखों में:

  • अलुमिनियम पाउडर कम,
  • पोटैशियम नाइट्रेट सीमित,
  • धूल दबाने वाले पदार्थ (dust suppressants) का प्रयोग किया जाता है।

इनसे धुआं और राख कम निकलती है।
परंतु, विशेषज्ञ मानते हैं कि:

“कम प्रदूषण” का अर्थ “सुरक्षित” नहीं होता।
यह केवल अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प है, न कि स्वच्छ विकल्प


🏙️ दिल्ली की सर्दियों में प्रदूषण का खतरा क्यों अधिक होता है?

  • तापमान में गिरावट से हवा नीचे बैठ जाती है।
  • धूल, धुआं और पार्टिकुलेट मैटर फंस जाते हैं।
  • हवा की गति धीमी होने से प्रदूषक फैल नहीं पाते।

ऐसे में एक रात की आतिशबाजी
पूरे सप्ताह की वायु गुणवत्ता बिगाड़ देती है।

पिछले साल भी, दिवाली के बाद PM2.5 स्तर 900 μg/m³ तक पहुंच गया था —
जो WHO मानक (25 μg/m³) से 36 गुना अधिक है।


🕊️ संतुलन की तलाश: परंपरा बनाम पर्यावरण

भारत में 20 से अधिक त्योहारों में आतिशबाजी का उपयोग होता है।
लेकिन केवल दिवाली पर ही इसे लेकर
सख्त निगरानी और बहस होती है।

कई लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हैं,
जबकि पर्यावरण कार्यकर्ता इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट मानते हैं।

इसलिए, अदालत का आने वाला फैसला
सिर्फ “पटाखों की अनुमति” का नहीं,
बल्कि भारत में पर्यावरण नीति के संतुलन का प्रतीक होगा।

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⚖️ निष्कर्ष: क्या समाधान है?

दिवाली की रौनक जरूरी है,
पर सांस लेना उससे भी ज्यादा जरूरी है।

अगर सुप्रीम कोर्ट हरित पटाखों को सीमित रूप में अनुमति देता है,
तो साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि:

  • केवल प्रमाणित पटाखे ही बिकें,
  • विक्रेताओं का पंजीकरण अनिवार्य हो,
  • और प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों को सख्त निगरानी अधिकार मिले।

स्वच्छ हवा और खुशहाल त्योहार — दोनों का संतुलन
संभव है, यदि जिम्मेदारी नागरिकों और सरकार दोनों साझा करें।


📊 संक्षेप में

विषय विवरण
मामला हरित पटाखों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट का संभावित फैसला
तारीख अक्टूबर 2025 (दिवाली से एक सप्ताह पहले)
पक्ष व्यापारी, पर्यावरणविद, नागरिक
चिंता वायु प्रदूषण, स्वास्थ्य खतरे
लाभार्थी प्रमाणित निर्माता और औपचारिक व्यापार क्षेत्र
एजेंसी CSIR-NEERI
प्रतीक ग्रीन लोगो और QR कोड
अदालत का फैसला सोमवार को अपेक्षित

 

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