📰 मिलावटी कफ सिरप से 23 बच्चों की मौत: एमपी-टीएन सरकारों में आरोप-प्रत्यारोप, आखिर दोषी कौन?

चेन्नई/भोपाल/नागपुर:
देश को झकझोर देने वाले मिलावटी कफ सिरप कांड में मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। गुर्दे की विफलता से गुरुवार को दो और बच्चों की मौत के बाद मरने वालों की संख्या बढ़कर 23 हो गई है। इस बीच तमिलनाडु की दवा कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स के मालिक गोविंदन रंगनाथन (75) को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

कफ सिरप
कफ सिरप

⚠️ मौत की वजह — जहरीला सिरप

नवीनतम पीड़ित गारविक पवार और मयंक सूर्यवंशी, दोनों एक से दो वर्ष के बीच के थे और एमपी के छिंदवाड़ा जिले के उमरेठ तहसील के निवासी थे।
डॉक्टरों के अनुसार, इन बच्चों को जिस सिरप से इलाज दिया गया, उसमें डीईजी (Diethylene Glycol) नामक औद्योगिक केमिकल मौजूद था — जो ब्रेक फ्लूड में इस्तेमाल होता है और किडनी फेलियर का कारण बनता है।

सिर्फ छिंदवाड़ा जिले में 45 दिनों के भीतर 20 बच्चों की मौत हुई है। इनमें से 10 की मौत नागपुर के जीएमसीएच अस्पताल में हुई, बाकी स्थानीय अस्पतालों में।


🏭 तमिलनाडु की कंपनी के खिलाफ कार्रवाई

जांच में खुलासा हुआ कि जहरीला सिरप तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले के सुंगुवरचत्रम स्थित श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स कंपनी में बना था।
राज्य की औषधि नियंत्रण प्रयोगशाला ने बैच SR-13 में डीईजी के खतरनाक स्तर की पुष्टि की, जिसके बाद कंपनी का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया और उत्पादन इकाई सील कर दी गई।

तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यम ने कहा —

“हमने डीईजी की मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी और केंद्र व एमपी सरकार को सतर्क कर दिया था। कुछ ही दिनों में इस यूनिट को स्थायी रूप से बंद कर देंगे।”

मंत्री ने दो वरिष्ठ दवा निरीक्षकों — दीपा जोसेफ और के कार्तिकेयन को भी निलंबित कर दिया, क्योंकि वे संयंत्र का नियमित निरीक्षण करने में विफल रहे।
एक आंतरिक ऑडिट में कंपनी की विनिर्माण श्रृंखला में 364 गंभीर खामियां पाई गईं — जिनमें सोर्सिंग, टेस्टिंग और पैकिंग से जुड़ी बड़ी लापरवाहियां शामिल थीं।


👮‍♂️ गिरफ्तारियां और जांच

एमपी पुलिस की सात सदस्यीय एसआईटी ने रंगनाथन को चेन्नई स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया। उनके मैनेजर जयारमन और लैब असिस्टेंट माहेश्वरी को भी हिरासत में लिया गया।
तीनों को छिंदवाड़ा कोर्ट में पेश करने के लिए ट्रांजिट वारंट जारी किया गया है।
पुलिस ने 589 बोतलें छिंदवाड़ा में और 1,534 बोतलें पूरे एमपी में जब्त की हैं।


⚖️ राजनीतिक टकराव: दोष किसका?

मौतों के बाद मामला अब राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में बदल गया है।
एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा —

“डीएमके की सरकार को बताना चाहिए कि जहरीले ब्रेक फ्लूड केमिकल वाली कंपनी का लाइसेंस उसने कैसे नवीनीकृत किया। यह पूरी तरह निर्माता की जिम्मेदारी है।”

उन्होंने बताया कि एमपी में दवा नियंत्रक और सहायक नियंत्रक को बर्खास्त कर दिया गया है।

वहीं, तमिलनाडु सरकार का कहना है कि

“केंद्र और एमपी सरकार ने ही दवा को मंजूरी दी थी, हमने पहले ही उन्हें चेताया था।”


🕯️ कांग्रेस का आरोप और विरोध प्रदर्शन

कांग्रेस नेता कमलनाथ ने आरोप लगाया कि एमपी की भाजपा सरकार “जानबूझकर रिपोर्ट कमजोर कर रही है।”
उन्होंने कहा —

“प्रयोगशाला की रिपोर्ट में हेरफेर कर सरकार किसी को बचाने की कोशिश कर रही है।”

भोपाल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मोमबत्ती जुलूस निकालकर न्याय और इस्तीफे की मांग की है।
मृत बच्चों के परिवारों को राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई है।


दोषी कौन है? — अब सवाल जवाब की मांग

अब देशभर में यह सवाल उठ रहा है —
👉 क्या जिम्मेदारी सिर्फ निर्माता पर है, या दवा की मंजूरी देने वाले राज्यों और केंद्र की भी है?
👉 दवा परीक्षण और वितरण की निगरानी व्यवस्था इतनी कमजोर क्यों है कि 364 खामियां नजरअंदाज हो गईं?
👉 बच्चों की मौत के लिए कौन जवाब देगा?

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📌 निष्कर्ष: ज़रूरी है सख्त दवा नियंत्रण और जवाबदेही

यह त्रासदी सिर्फ एक राज्य की गलती नहीं, बल्कि पूरे औषधि नियामक सिस्टम की विफलता है।
अगर समय रहते निगरानी होती, तो शायद 23 मासूम ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती थीं।
अब देश को मिलावटी दवाओं के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस नीति की सख्त ज़रूरत है — वरना यह “खामोश जहर” आगे भी जिंदगी छीनता रहेगा।

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